SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ एकजीवं पडुन जहएण मुक्कसेण तेत्तीसं सागरोवमाणि । (१०६ सूत्र पृष्ठ १६४ कालानुगम द्वार) कायाणुवादेण पुढधिकाइनो णामकध भवदि ? (सूत्र १८) पुढविकाइयणामाए उदएए. सूत्र १६ पृष्ठ ३५ स्वामित्वानुगम) भाउकाईनो णाम कथं भवति ? सूत्र आउकाइय णामाए उदएण सूत्र २१ तेउकाई प्रोणाम कधं भवदि ? सूत्र २२ तेसकाइय णामाए उदएण सूत्र २३ बाउकाईयो णाम कधं भवदि ? सूत्र २४ वाउकाइय णामाए उदएण सूत्र २५ (पृष्ठ ३६ स्वामित्वानुगम द्वार) माणद पाणद पारण अच्छुद कल्पवासिय देवाणमंतरं केवचिरं कालादोहोदि? सूत्र २४ जहएणण मासपुधत्तं (२५ सूत्र पृ०६७ अन्तरानुगम द्वार) वणादिकाइय णिगोदजीव वादरसुहम पज्जत भपज्जत्ताण मन्तरं केवषिरं कालादो होदि ? (सूत्र ५० पृष्ठ १०१ अन्तरानुगम द्वार) जहएणेण खुद्दाभवग्गहणं। (सत्र ५१ पृष्ठ १०२ अन्तरानुगम द्वार)
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy