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________________ १४ टीक है । संयत पद विशिष्ट पाठ उस सूत्र में सिद्ध नहीं होता है। मागे चलकर सोनीजी ने द्रव्यानुगम का यह प्रमाण दिया है मसिणीसु सासणसम्माटिप्पहुडि जाव भजोग केवजित्ति दव्यरमाणेण फेवडिया-संखेजा। द्रव्य प्रमाणानुगम । इस प्रमाण से उन्होंने मानुषियों के प्रयोग केवलो तक १५ गुणस्थान होने का प्रमाण दिया है। सो ठीक है, इसमें हमें कोई विरोध नहीं है, कारण यहां पर्यानियों का सम्बन्ध और प्रकरण नहीं है पता भावली को अपेक्षा का कथन है। सूत्र में 'मजोगकेहित्ति' पाठ है अतः बिना पूर्व की अनुवृत्ति के सत्र से ही भावली के पौदह गुणस्थान बताये गये हैं। इस प्रकार उन्होंने क्षेत्रानुगम का-'मणुसगदीए मणुसमणुस पजतमासणीसु मिच्छाइट्टियाडि जाव पजोगकेवली देवड़िखेत्ते ? लोगस्स असंखेजदिभागे।' यह प्रमाण भी दिया है उससे भी मानुषी के चौदह गुणस्थान बताये हैं, सो यहां पर भी हमारा वही उत्तर है। सूत्रकार ने भारत्रो की अपेक्षा से यहां भी पयोगी पयत गुणस्थान क्षेत्र की अपेक्षा बताये हैं। इसमें हमें क्या भापति हो सस्ती है। जबकि शरीर रचना की निष्पत्ति रहित भाव मानुषी का यह कथन है। सोनी जो के इस द्रव्य प्रमाणानुगम प्रमाण के प्रसा में कहें इतना और बता देना चाहते हैं कि उस द्रव्य प्रमाणानुगम द्वार में भी पटसरडागम सिद्धांत शाम में द्रव्य मनुष्य द्रलियां मादि की संख्या बताई। प्रमाण के लिये एक यो सत्रों बाबा
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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