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________________ පුදු समाप्त होने पर बेदादि मार्गाओं में भाववेद की मुख्यता से ही कथन है । वेदादि मार्गणाओं में केवल भाववेद ही क्यों लिया गया है ? उसका भी मुख्य हेतु यह है कि वेद मार्गदा में नोकषाय रूप कर्मोदय में गुणभ्थान बताये गये हैं। कषाय मागंणा में कषायोदय जनित कर्मक्ष्य में गुणस्थान बताये गये हैं, ज्ञान मार्गणा में मतिज्ञानादि (आवरण कर्म भेदों में) में गुरुस्थान बताये गये हैं, इसी प्रकार संयम दर्शन लेश्या भव्यत्व सम्यक्त्व सहित्व आहारस्व इन सभी मार्गणाओं के विवेचन में १०१ सूत्र से लेकर १७७ तक ७७ सूत्रों में और उन सूत्रों की धवला टीका में कहीं भी पर्याप्त अपयाप्ति, शरीर रचना, आदि का उल्लेख नहीं है । पाठक और भाववेदी विद्वान प्रन्थ निकालकर मछी तरह देख लेवें यही कारण है कि वे वेदादि मार्गणाएँ भात्रों की ही प्रतिपादक हैं द्रव्य शरीर का उनमें कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिये उन वेदादि मार्गणामों में मानुषियों के नव मौर चौदह गुणस्थान बताये गये हैं । इतना स्पष्ट विवेचन करने के पीछे अब हम उन वेखादि माग - णाओं के विधायक सूत्रों और उनकी धवला टीका का उद्धरण देना व्यर्थ समझते हैं । जिन्हें कुछ भी माशङ्का हो वे प्रन्थ सोल कर प्रत्येक सूत्र को और भवला टीका को देख लेखें ।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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