SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामनुपशांततत्संतापानां सुरुमितिचेन्न तहकीका सौषमकल्पोपपत्ते: (पृ० १६६ धवला) र्थ-सनत्कुमार स्वर्ग से लेकर ऊपर बियां उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि सौधर्म और ईशान स्वर्ग में देवांगनामो के उत्पन्न होने का जिस प्रकार कथन किया गया है. उस प्रकार भागे के स्त्रों में उनकी उत्पत्ति का कथन नहीं किया गया है इसलिये वहां बियों के प्रभाव रहने पर जिन को सम्मन्धी ताप शांत नहीं हुमा है ऐसे देवों के उन बिना सुख कसे हो सकता है ? उत्तर--नही क्योंकि सनत्कुमार भादि कल्प सम्बन्धी त्रियों की सौवर्म भोर ईशान स्वर्ग में उत्पत्ति होती है। इस धवला के कथन से यह 'द्रव्यात्रियोंकाही कथन है भावश्री का किसी प्रकार सम्भव नहीं हो सकता है। यह बात स्पष्ट कर दी गई है। फिर पाश्चर्य है कि 'समूचे षटखण्डागम में भाववेद का कथन है, द्रव्यवेर का नहीं है। यह बात सभी भावपक्षी विद्वान अपने लेखों में बड़े जोर से लिख रहे हैं? क्या उनकी दनि स्पष्ट प्रमाणों पर नहीं गई है ? इसके पहले तिचिनी के प्रकरण में 'सम्ब हत्यीसु' ऐसा मार्ष पाठ देकर भी धवनाकार ने कर दिया है कि देबिया, मानुषियां और नियगिनियां इन तीनों प्रकार की द्रव्यात्रियों की उत्पत्ति का बह विधान है जैसा कि घबना पृष्ठ १०५ में लिखा है। हम पीछे उसका उद्धरण हे चुके हैं। फिर इसी पवना में देवों और देवांगनामों के परसर प्रवी.
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy