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________________ ८१ क्या कर सकते हैं १३पलिये उपयुक्त सभी सूत्र पर्याप्त अपर्याप्ति के साथ गुणस्थानों का विधान होने से द्रव्यद ही विधायको, १२-१३ सूत्र भी द्रव्यत्री केही विधायक हैं। बसा सिद्धांत-सिन निर्णय मानने से न तो 'संयत' पद जोड़ा जा सकता है और न उपयुक्त दूषण हो पा सकते हैं। ६३वां सूत्र द्रव्यवेदका ही क्यों है ? भाववेद क्यों नहीं ? वें सत्र में जो मानुषी पद वह मानुषी द्रव्यमोहीनी जाती है। भावत्री नहीं ली जा सकती है इसका एक मूल-खास इंतु यही भावपक्षी विद्वानों को समझ लेना चाहिये कि यहां पर वेद मागणा का प्रकरण नहीं है जिसमें भायर कप नोकाय के उदय जनित भाव परिणाम लिया जाय । किन्तु यहां पर भादारिक काययोग व पर्याप्ति का प्रकरण होनेसे मांगोपांग नामकर्म शरीर नामक गतिनामकर्म एवं निर्माण प्रादि नामको उदय सं बनने वाला द्रव्यत्री का शरीर ही नियम स लिया जाता है। यह बात इस ३ सूत्र में भोर १२ भादि पहलके सूत्रों में भावपक्षी विद्वानों को ध्यान में रखकर ही विचार करना चाहिये। वारपत्र प्रति में 'सञ्जद' शब्द इसी व सत्र में 'सर' पद ताइपत्र प्रति में बताया जाता है, इस सम्बन्ध में अधिक विचार की पावश्यकता नहीं है, हम होवन दो बातें इस सम्बन्ध में कह देना पर्याप्त समझते हैं। पहली बात तो यह है कि यदि वादपत्र की प्रतियों में 'सनद' पद
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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