SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ सिद्धि का प्रगट कर रहे हैं दूसरे को छिपा रहे हैं। दूसरा अंश यह कि चौथे गुणस्थान वाला सम्यमशेन को साथ लेकर द्रव्य स्त्री पर्याय में नहीं पैदा होता है। इसीलिये उसके द्रव्यत्री के अपर्याप्त अवस्था में चौथा गुणस्थान नहीं होता है, प्रमाण देखिये भयदापुराणे हि थी सढोवि य घम्मणारय मुच्चा। थी सढयद कमसा णाणु ऊ चरित तिरुणाणू। (गोम्मटसार कम० गाथा २८७ पृ० ४१३) इस गाथा की व्याख्या में यह स्पष्ट किया गया है निवृत्यपयाप्तासं यते स्त्रीवेदादयो नहि, असंयतस्य स्त्रीनाऽनुत्पत्तः । पंढवदास्यापि च नहि, पंढत्वेनापि तस्यानुत्पत्तः । नुत्पत्तेः भयमुत्सर्गविधिः प्रायटनरकायुस्तियङमनुष्ययोः सम्यक्त्वेन समं घमायामुत्पत्ति सम्मवान तेन असंयते स्त्रीवादिनि पतुणों, पंढवेदिनि त्रयाणां चानुपूर्वीणां उदयोनास्ति । (गो० कमे० पृ० ४१३-४१४ टीका) इस गाथा की वृत्ति का अर्थ पण्डित-प्रवर टोडरमल जी ने इस प्रकार किया है "निवृत्ति-अपर्याप्तक मसंयत गुणस्थान विर्षेनीवेद का उदय नाही, जाते असंयत मरि स्त्री नाही उपजे हैं। बहुरि धर्मा नरक बिना नपुसकबंद का भी उदय नाही, जातें पूर्व नरकायु गांधी होह ऐसे विर्यच वा मनुष्य सम्यत्व सहित मरि घमा नरक विष ही उपजे है। याही ते असंयत विर्षे बोवेदी वो चारों
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy