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________________ उत्तर में भी इस पुत्र का कोई उल्लेख नहीं है। यह शंका एक सम्बन्धित-पाशंका रूप में सामान्य शंका है जो इस सूत्र से कोई सम्बन्ध नहीं रखती। इस प्रकार को आशंका भो तभी हुई है जबकि इस भाषे (मूत्र) में दोनों संयमों का सर्वथा प्रशव बता. पर स्त्रियों के बनधारण भोर असंयम गुणस्थान बताया गया। वैसी दशा में ही यह शंका की गई है फिर जहां पर खियों के १४ गुणस्थान कहे गये हैं वे किस दृष्टि से कहे गये है ? इस शका के समाधान से भी सिद्ध हो जाता है कि यह १३वां सूत्र द्रव्यत्री का प्रतिपादक है । भावत्री के प्रकरण (वेदानुवाद बादि) में ही चौदह गणस्थान कह गये हैं इस सूत्र में तो योग मागंणा और पर्याप्ति सम्बध का प्रकरण होने से द्रव्यत्री का हो कथन है और इसीलिये इस इवें सूत्र में पांच गुणस्थान बताये गये हैं। यदि सूत्र में सजत पद होता तो जैसे वेदानुवाद भादि भाग के सूत्रों में सर्वत्र मणुस्सातिवेदा मिच्छाटिप्पहुड जाव अाणट्टिति । (सूत्र १०८) यानो मिश्याष्टिस लेकर वेंगुणस्थान तक' ऐसा कथन किया। वहां प्रभृति कापर न गुणस्थान सर्वत्र बताये गये हैं वैसे इस सत्र में भी प्रभृति कहकर बता देते। परन्तु यहां पर वैसा कथन नहीं किया गया। जहां प्रभृति शब्द से नो गुणस्थानों का कथन है वहां पर चौदह गुणस्थानों को कोई शंका भी नहीं उठाई गई। यहां पर ६३वं सूत्र में यदि सजद पद होता तो फिर चौदह गुणस्थान जहां बताये गये हैं वे कैसे बनेंगे ऐसो शंका का कोई
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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