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________________ ६७ से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे मानुषियां द्रव्यस्त्रियां ही हैं। यदि भावखी का प्रकरण और कथन होता तो वस्त्र सहितपना उनके कंसे कहा जाता, जबकि भावी नोत्रं गुणस्थान तक रहता है और यदि ६३ वें सूत्र में संयम पर होता तो धाचार्य यर उत्तर कदापि नहीं दे सकते थे कि उन स्त्रियों के द्रव्य संयम भी नहीं है और भावसयम भी नहीं है । दूसरे - यदि सूत्र में सयम पद होता तो 'द्रव्यंस्त्रियों के इसी सूत्र से मोक्ष हो जायगी' इसके उत्तर में आचार्य यह कहे बिना नहीं रहते कि यहां पर भावत्री का प्रकरण है. भावही की अपेक्षा रहने से स्त्रियों की मोक्ष का प्रश्न खड़ा ही नहीं होता । परन्तु श्राचार्य ने ऐसा उत्तर कहीं भी इस धवला में नहीं दिया है। प्रत्युत यह वार २ कहा है कि स्त्रियां सहित रहती हैं इसलिये उनके द्रव्य सयम और भाव सयम कोई सयम नहीं हो सकता है इससे यह बात स्पष्ट खुलासा हो जाती है कि यह ६३ सूत्र की मानुषी क्रयखा है और इसलिये सूत्र में संयम पद का सर्वथा निषेध आचार्य ने किया है। उसका मूल हेतु यह है कि यह योग मार्गणा - औदारिक काययोग का कथन है, श्रदारिक काययोग में पर्यात अवस्था रहती है। इसलिये द्रव्यखां का ही ग्रहण इस सूत्र में अनिवार्य सिद्ध होता है। अतः संयम पद सूत्र में सर्वधा असम्भव है I इस सब कथन को स्पष्ट देखते हुये भी भावपक्षी विद्वानों का सूत्र में संयम पद बताना आश्चर्य में डालता है 1
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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