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________________ की पर्याप्त अवस्था में और अपर्याप्त अवस्था में पहला और दूसरा या दो गुणस्थान बताये गये हैं। उसी स्त्र से इस सूत्र में मानुषी को अनुवृत्ति मातो। १२ सूत्र में इयत्री को अपर्याप्त अवस्या के गुणस्थानों का वर्णन है और इस ६३ वें सत्र में उसी द्रव्यम्रो की पयात भवस्था में होने वाले गुणस्थानों का वर्णन है। इस ६३ वें सूत्र में पड़े हुये 'पियमा पवियो' नियम और यात प्राथा इन दो मोर पूरा मान मोर ध्यान करना चाहिये क्योंकि ये दो पद ही इस सूत्र में ऐसे हैं जिनसे द्रव्यखी का पक्षण हो सकता है। पर्याप्ति शन्द पट पानि भोर शरीर रचना की पूर्णता का विधान करता है। इससे द्रव्य शरीर की सिद्धि होती है। नियम शब्द व्यत्रो की पर्यात रवस्था में उक्त गुणस्थानों को प्राप्ति को बाधता को सूचित करता है। मानुषी शनको अनु. वृत्ति ऊपर २ वें सूत्र से बाती है, उससे यह सिद्ध होता है कि वह द्रव्य शरीर जो पाराम से अनिवार्य सिद्ध होता है ध्यत्री का लिया गया। “१२ और १३ सूत्रों में जो पर्याप्ति तथा भपति पदों से द्रव्य शरीर लिया गया है वाय मनुष्य का मान लिया जाय तो क्या बापा १ इस शंका समाधान हम २३सबबिषन में कर चुके हैं यहां पर और भी सर कर देते है कि मनुष्य (पुरुष) द्रव्य शरीर का निरूपण कर १०,११ इन तीन सूत्रों में डिया जा चुका है। वहां उन सूत्रों में
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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