SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८] श्री सिद्धचक्र विधान श्रावक पद में जास लोभ को वास है, प्रत्याख्यानी श्रुत में संज्ञा सात है। चारित मोह सु प्रकृति रूप तिह नाम है, नाश कियो मैं नमूं सिद्ध शिवधाम है। ॐ हीं प्रत्याख्यानावरणलोभरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥३५॥ भुजङ्गप्रयात छन्द यथाख्यात चारित को नाशकारा, महावत को जास में हो उजारा। यही संज्वलन क्रोध सिद्धान्त गाया, नमूं सिद्ध के चरण ताको नसाया॥ . ॐ ह्रीं संज्वलनक्रोधरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥३६॥ रहै संज्वलन रूप उद्योत जेते, न हो सर्वथा शुद्धता भाव तेते। यही संज्वलन मान सिद्धान्त गाया, _ नमूं सिद्ध के चरण ताको नसाया॥ ___ ॐ ह्रीं संज्वलनमानरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥३७॥ बहै संज्वलन की जहाँ मन्द धारा, लहै हैं तहाँ शुक्लध्यानी उभारा। यही संज्वलन वक्र सिद्धान्त गाया, नमूं सिद्ध के चरण ताको नसाया॥ __ॐ ह्रीं संज्वलनमायारहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥३८॥ जहाँ संग्वलन लोभ है रञ्च नाहीं, निजानन्द को वास होवे तहाँ ही। ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy