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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [५७ समारम्भ मन वचन करि, हर्षित हों युत क्रोध। नमूं सिद्ध या बिन लहो, परम शांति सुख बोध॥ ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनक्रोधसमारम्भपरमशान्ताय नमः अयं ॥४॥ छन्द मोतियादाम वैर वच योग धरै जिय रोष, करें विधि भेद अरम्भ सदोष। तजो यह सिद्ध भये सुखकार, नमूं परमामृत तुष्ट अवार॥ ___ॐ ह्रीं अकृतवचनक्रोधारम्भपरमामृततुष्टाय नमः अयं ॥६५॥ अकारित वैनसदायुतक्रोध, महादुःखकारअरम्भअबोध। भये समरूप महारसधार, नमें हम सिद्ध लहैं भवपार ॥ ___ॐ ह्रीं अकारितवचनक्रोधारम्भसमरसाय नमः अर्घ्यं ॥६६॥ दोहा नानुमोद आरम्भ में, क्रोध सहित वच द्वार। परम प्रीति निज आत्मरति, नमूं सिद्ध सुखकार॥ ॐ ह्रीं नानुमोदितवचनक्रोधारम्भपरमप्रीतये नमः अर्घ्यं ॥१७॥ . अडिल्ल वचन द्वार संरम्भ मानयुत जे करें, . जोड़ करन उपकरण मानसों उच्चरैं। नाना विधि दुःख भोग निजातमको, नमूं सिद्ध या विन अविनश्वर पद धरै॥ ॐ ह्रीं अकृतवचनमानसंरम्भअविनश्वरधर्माय नमः अर्घ्यं ॥६८॥ मान प्रकृति करि उदै करावें ना कदा, वचन न करि संरम्भ भेद वरण॒ यदा।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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