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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [४५ सुरगण मणिधर जासवासलहि, मदतजिगन्धलुभावत हैं। सोचन्दननन्दनवनभूषण,तुमपदकमलचढ़ावतहैं।लोका. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ चंपक ही के भ्रम भ्रमरावलि, भ्रमत चकित चकराज भए। शशिमण्डलजानोसोअक्षत, पुञ्जधारपदकञ्चनये।लोका. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ मदन वदन दुतिहरन वरन रति, लोचन अलिगण छाय रहे। पुष्पमालवासित विशालसो, भेंटधरत उरकामदहे॥लोका. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ चितवत मन वरणत रसना रस, स्वाद लेत ही तृप्त थये। जन्मान्तर हू क्षुधा निवाएँ, सोनेवज तुम भेंट धरे ॥लोका. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ लवमणिप्रभा अनूपम सुर निज, शीश धरण की रास करै। याविनतुच्छ विभव निजजानें, सोदीपक तुम भेंटधरै॥लोका .. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री ममत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह मोहान्धकारनिवाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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