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________________ ४२] श्री सिद्धचक्र विधान चापाइ दोहा सिद्धन के जु अनन्त गुण, कहि न सकें गणराय। तिन सिद्धन को में जजू, पूरण अर्घ चढ़ाय॥ ॐ ह्रीं अनन्तानन्त गुणात्मक सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः अर्घ्य। __जयमाला - दोहा तीर्थङ्कर त्रिभुवन धनी, जा पद करत प्रणाम। हम किह मुख वर्णन करें, तिन महिमा अभिराम॥ चौपाई जयभविकुमुदनमोदनचन्दा,जयजिनन्दत्रिभुवनअरविन्दा। भव तपहरणशरणरस कूपा, मदज्वर वह्निहरण घनरूपा॥ अकथित महिमा अमित अथाई, निर उपमेय सरसता नाई। भावलिंग बिन कर्म खिपाई, द्रव्य लिंगबिन शिव पदपाई॥ नय विभागबिन वस्तुप्रमाणा, दयाभाव बिन नहिं कल्याणा। पंगु सुमेरु चूलिका परसैं, गूंग ज्ञान आरम्भे स्वरसै॥ यो अजोग कारज नहिं होई, तुम गुन कथन कठिन है सोई। सर्व जैन शासन जिनमाहीं, भाग अनन्त धरै तुम नाहीं॥ गोखुर में नहीं सिन्धु समावे, वायस लोक अन्त नहीं पावै। तातें केवल भक्ति भाव तुम, पावन करो अपावन उर हम॥ जे तुम यश निज मुख उच्चारै, ते तिहूँ लोक सुजस विस्तारैं। तुम गुण गान मात्र कर प्रानी, पावैं सुगुण महा सुखदानी॥ जिन चित ध्यान सलिल तुमधारा, ते मुनितीरथ हैं निरधारा। तुम गुण हंस तुम्हीं सरवासी, वचन जाल मे लेत न फांसी॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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