SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८] श्री सिद्धचक्र विधान दोहा सूक्ष्मादि गुण सहित हैं, कर्म रहित नीरोग। सिद्धचक्र सो थापहूँ, मिटैं उपद्रव योग॥२॥ ___ इति यन्त्र स्थापनं अथाष्टकं चाल लावनी सिद्धगणपूजोहरखाई, चौसठिसगुणनामा विधिमाला। सुमरों सुखदाई, सिद्धगण पूजोरे भाई॥आंचली॥ त्रिभुवन उपमा वास लखें, तुम पद अम्बुज के माई। निर्मल जल की धार देहू, अवशेष करणताई। सिद्ध.॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ तुम पद. अम्बुज वास लेन मनु, चन्दन मन भाई। निजसों गुणाधिक्य संगति को, लहिय न हरषाई॥ सिद्ध.॥ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ क्षीरज धान सुवासित नीरज, करसों छरलाई। अंगुल से तन्दुलसों पूजत, अक्षय पद पाई॥ सिद्ध.॥ _____ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy