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________________ श्री सिद्धचक्र विधान २६ ] जय जगत वास तज जगत स्वामी भये, जय विनाशनाम थित परम नामी भये । जय कुबुधि रूप तजि सुबुधि रूपा भये, जय निषध दोष तज सुगुण भूपा भये ॥ कर्मरिपु नाश कर परम जय पाईए, लोकत्रयपूरि तुम सुजस घन छाईये । इन्द्र नागेन्द्र धरसीस तुम पद जजें, महा वैराग रस पाग मुनिगण भजैं ॥ विघन वन दहन दौ अघन घन पौन हो, . सघन गुण रासके, बासको भौन हो । शिव तिय वसकरन मोहिनी मन्त्र हो, कर्म छयकार वैताल के यन्त्र हो ॥ कोटि थित क्लेशको मेटि शिवकर रहो, उपलकी नकल हो अचल इकथल रहो । स्वप्न में हू निज अर्थ को पावहीं, जे महा खलन तुम ध्यान धरि ध्यावही ॥ आपके जाप बिन पाप सब भेंट ही, पाप की ताप को पाप कब मेंटही । सन्त निज दास को आस पूरी करो, जगत से काढ निज चरण में ले धरो ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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