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________________ श्री सिद्धचक्र विधान निजानन्दरसस्वादमें लीनाअन्ता, मगनहोरराजवर्जित निरन्ता। कहाँलोकहूँआपकोपारनाही, धरोंआपकोआपहीआपमाहीं॥ ॐ ह्रीं अविलीनाय नमः अर्घ्यं ॥१६॥ अथ जयमाला - दोहा . पंच परम परमात्मा, रहित कर्म के फन्द। जगत प्रपंच रहित सदा, नमों सिद्ध सुखकन्द॥ त्रोटक छन्द . दुःखकारन द्वेष विडारन हो, वश डारन राग निवारन हो। भवितारण पूरणकारण हो, सब सिद्ध नमों सुखकारण हो। समयामृत पूरीत देव महौ, पर-आकृत मूरति लेश नहीं। विपरीत विभाव निवारन हो, सब सिद्ध नमोंसुखकारणहो॥ अखिनाअभिनाअछिनासुपरा,अभिदाअखिदाअविनाशवरा। यजमान जरादुःखजारन हो, सबसिद्ध नमों सुखकारण हो॥ निरआश्रितस्वाश्रितवासितहो, परकाश्रितखेदविनाशितहो। विधि हारन पारन धारन हो, सब सिद्ध नमों सुखकारण हो। अमुधाअछुधाअद्विधाअविधं, अकुधासुसुधासुबुधासुसिधं । विधिकाननदहन हुताशनहो, सबसिद्धनमोंसुखकारणहो॥ शरनं चरनं मरनं करनं, धरनं डरनं मरनं हरनं । तरनं भववारिधितारन हो, सबसिद्ध नमों सुखकारण हो॥ भववास तरास विनाशन हो, दुःखरास विनास हुताशन हो। निजदासन त्रास निवारन हो, सबसिद्धनमों सुखकारणहो॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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