SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [२८९ तुम उपदेश थकी कहैं, द्वादशांग गणराज। पूरण ज्ञाता तुम्हीं हो, प्रनमूं मैं शिवकाज॥ ____ॐ ह्रीं अहँ पूर्णवेदज्ञाय नमः अर्घ्यं ॥७०६ ॥ पार भये भवसिन्धु के, तथा सुवर्ण समान। उत्तम निर्मल थुति धरै, नमत कर्ममल हान॥ ___ॐ ह्रीं अहँ भवसिन्धुपारगाय नमः अर्घ्यं ॥७०७॥ सुखाभास पर निमिततें, पर उपाधितें होत। स्वतः सुभाव धरो सहि, सत्यानन्द उद्योत ॥ ॐ ह्रीं अर्ह सत्यानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥७०८॥ मोहादिक परबल महा, सो इकसो तुम जीत। औरन की गिनती कहाँ, तिष्ठो सदा अभीत। . ॐ ह्रीं अहँ अजयाय नमः अर्घ्यं ।७०९॥ दिव्य रत्नमय ज्योति हो, अमित अकंप अडोल। मनवाँछित फलदाय हो, राजत अखय अमोल॥ ____ॐ ह्रीं अहँ मनवांछितफलदाय नमः अर्घ्यं ॥७१०॥ देह धार जीवन मुकत, परमातम भगवान। सूर्य समान सुदीप्तधर, महाऋषीश्वर जान॥ ॐ ह्रीं अहँ जीवनमुक्तजिनाय नमः अर्घ्यं ॥७११॥ स्व भय आदिक से परे, पर भय आदि निवार। · पर उपाधि बिन नित सुखी, बन्दूं भाव सम्हार॥ ॐ ह्रीं अहँ शतानन्दाय नमः अर्घ्यं ।।७१२॥ ईश्वर हो तिहुँलोक के, परम पुरुष परधान। ज्ञानानन्द स्वलक्ष्मी, भोगत नित अमलान । ॐ ह्रीं अहँ विष्णवे नमः अर्घ्यं ॥७१३ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy