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________________ २०८] श्री सिद्धचक्र विधान तुम सम और न जगत् मैं, उत्तम श्रेष्ठ कहाय। आप तिरै भवि तार दें, बन्दूं तिन के पाय॥ ____ॐ ह्रीं अहँ जिनसत्तमाय नमः अर्घ्यं ॥५८॥ स्वपर कल्याणक हो प्रभू, पञ्चकल्याणक ईश। श्रीपति शिवशङ्कर नमूं, चरणाम्बुज धरि शीश॥ ॐ ह्रीं अहँ जिनप्रभवाय नमः अर्घ्यं ॥५९॥ मोह महाबल दलमली, विजय लक्ष्मीनाथ। परमज्योति शिवपद लहो, चरण नमूं धरि माथ॥ ॐ ह्रीं अर्ह परमजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६०॥ चहुँ गति दुःख विनाशिया, पूरा निज पुरुषार्थ। नमूं सिद्ध कर जोरिकैं, पाऊँ मैं सर्वार्थ ॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ जिनचहुँगतिदुःखान्तकाय नमः अयं ॥६१॥ जीते कर्म निकृष्ट को, श्रेष्ठ भये जिनदेव। तुमसम और न जगत् में, बन्दूं मैं तिन भेव॥ ॐ ह्रीं अहँ जिनश्रेष्ठाय नमः अयं ॥२॥ आप मोक्ष मग साधियो, औरन सुलभ कराय। आदि पुरुष तुम जगत् में, धर्म रीति वरताय॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ जिनज्येष्ठाय नमः अयं ॥६३ ॥ मुख्य पुरुषारथ मोक्ष है, साधत सुखिया होय। मैं बन्दूं तिन भक्ति कर, सिद्ध कहावें सोय॥ ॐ ह्रीं अहँ जिनमुखाय नमः अयं ॥६४॥ . सुरपत सम अग्रेस हो, निज पर भासनहार। आप तिरें भवि तारियो, बन्दूं योग सम्भार॥ - ॐ ह्रीं अहँ जिनाग्राय नमः अयं ॥६५॥ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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