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________________ श्री सिद्धचक्र विधान अविनाशी अविकार परम शिवधाम हो, पायो सो तुम सुगत महा अभिराम हो । मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं ॥ ॐ ह्रीं साधुसुगतिभावाय नमः अर्घ्यं ॥ ५०० ॥ जासो परे न और जन्म वा मरण है, सो उत्तम उत्कृष्ट परम गति को लहौ । मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, [ १९३ नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहें ॥ ॐ ह्रीं साधुपरमगतिभावाय नमः अर्घ्यं ॥ ५०१ ॥ पर निमित्त रागादिक जे परनाम हैं, इन विभावसों रहित साधु शुभ नाम हैं। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहें ॥ ॐ ह्रीं साधुविभावरहिताय नमः अर्घ्यं ॥ ५०२ ॥ निज सुभाव सामर्थ सु प्रभुता पाइयो, इन्द्र फनेन्द्र नरेन्द्र शीश निज नाइयो । मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं ॥ ॐ ह्रीं साधुस्वभावसहिताय नमः अर्घ्यं ॥ ५०३ ॥ कर्म बन्धसों रहित सोई शिवरूप हैं, निवसैं सदा अबन्ध स्वशुद्ध अनूप हैं ।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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