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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१७७ पाप मिटै तुम शरण गहेतें, मंगल शरम कहाय लहैतें। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुमङ्गलशरणाय नमः अयं ॥४१५॥ देखत ही सब पाप नसे है, आनन्द मंगलरूप लसे है। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ह्रीं साधुमङ्गलदर्शनाय नमः अयं ४१६ ॥ जानत हैं तुमको मुनि नीके, पाप कलाप मिटै तिनहीके। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुमङ्गलज्ञानाय नमः अयं ॥४१७॥ ज्ञानमई तुम हो गुणरासा, मंगल जोति धरै रवि कासा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ . ॐ ह्रीं साधुज्ञानगुणमङ्गलाय नमः अध्यं ॥४१८॥ मंगल वीर्य तुम्हीं दर्शाया, काल अनन्ता पाप गलाया। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ - . ॐ ह्रीं साधुवीर्यमङ्गलाय नमः अयं ॥४१९॥ वीर्य महा सुखरूप निहारा, पाप बिना नित ही अविकारा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यमङ्गलस्वरूपाय नमः अध्यं ॥४२०॥ मंगल वीर्य महा गुणधामी, निज पुरुषार्थ हि मोक्ष लहामी। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यपरममङ्गलाय नमः अध्यं ॥४२१॥ वीर्य स्वाभाविक पूर्ण तिहारा, कर्म नशाय भये भवपारा। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यद्रव्याय नमः अयं ॥४२२॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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