SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान १६९ पराश्रित भाव विनशाया, सुथिर निजरूप दर्शाया। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्रीं पाठकंतपसाचाराय नमः अयं ॥३५२॥ मुक्तपद दैन अनिवारी, सर्व बुध चरण आचारी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्रीं पाठकरत्नत्रयाय नमः अयं ॥३५३ ॥ शुद्ध रत्नत्रय धारी, निजातम रूप अविकारी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। .. ॐ ह्रीं पाठकरत्नत्रयसहायाय नमः अध्यं ॥३५४॥ . धौव्य पञ्चमगति पाई, जन्म फुनि मरण छुटकाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। . ॐ ह्रीं पाठकध्रुवसंसाराय नमः अध्यं ॥३५५॥ अनूपम रूप अधिकाई, असाधारण स्वपद पाई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। . ॐ ह्रीं पाठकएकत्वस्वरूपाय नमः अयं ॥३५६ ॥ आन तुम सम न गुण होई, कहो एकत्व सोई। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्री पाठकएकत्वगुणाय नमः अध्यं ॥३५७॥ निजानन्द पूर्ण पद पाया, सोई परमात्म कहलाया। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्री पाठकएकत्वपरमात्मने नमः अयं ॥३५८॥ उच्चगत मोक्ष का दाता, एक निज-धर्म विख्याता। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया। ॐ ह्रीं पाठकएकत्वधर्माय नमः अयं ॥३५९ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy