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________________ १६२] श्री सिद्धचक्र विधान क्षयोपशम परिणाम कर, साधन न निज का रूप, या निजपद में लीनता, ये ही गुप्त स्वरूप। ॐ ह्रीं सूरिस्वरूपगुप्तये नमः अयं ॥२९९॥ इंद्रियजनित न दुःख जहाँ, सदा निजानंद रूप, निर आकुल स्वाधीनता, वरतै शुद्ध स्वरूप। ॐ ह्रीं सूरिपरमात्मस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥३०॥ रोला छन्द सम्पूरण श्रुत सार निजातम बोध लहानो। निज अनुभव शिव मूल भानु उपदेश करानो॥ शिष्यन के अज्ञान हरै ज्यूं रवि अँधियारा। पाठक गुण सम्भवै सिद्ध प्रति नमन हमारा॥ ॐ ह्रीं पाठकेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३०१॥ मुक्ति मूल है आत्म ज्ञान सोई श्रुत ज्ञानी। तत्त्व ज्ञान सों लहै निजातम पद सुखदानी॥ शिष्यन.॥ . ॐ ह्रीं पाठकमोक्षमण्डनाय नमः अयं ॥३०२॥ भवसागर तें भव्य जीव तारण अनिवारा। तुम में यह गुण अधिक आप पायो तिस पारा॥ शिष्यन.॥ ॐ ह्रीं पाठकगुणेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३०३ ॥ दर्शन ज्ञान स्वभाव धरो तद्रूप अनूपी। हीनाधिक बिन अचल विराजत शुद्र सरूपी॥ शिष्यन.॥ ॐ ह्रीं पाठकगुणस्वरूपेभ्यो नमः अयं ॥३०४॥ निज गुण वा परयाय अखण्डित नित्य धरै है। तिहुँकाल प्रति अन्य भाव नहीं ग्रहण करै है॥ शिष्यन.॥ ___ॐ ह्रीं पाठकद्रव्याय नमः अयं ॥३०५॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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