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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१५७ माला छन्द शशि सन्ताप कलाप निवारण ज्ञान कला सरसै। मिथ्यातम हरि भवि आनन्द करि अनुभव भाव दरसै॥ सूरि निज भेद कियो परसै। भये मुक्ति मैं नमूं शीश निज जोर जुगल करसै॥ ॐ ह्रीं सूरिअमृतचनद्राय नमः अयं ॥२६३॥ पूरण चन्द्र सरूप कलाधर ज्ञान सुधा वरसै। भवि चकोर चित चाहत नित मनुचरण जोति परसै॥सूरि.॥ - ॐ ह्रीं सूरिसुधाचन्द्रस्वरूपाय नमः अयं ॥२६४॥ जगजिय ताप निवारण कारण विलसे अन्तरसैं। देव सुधा सम गुण निवाहकर सकल चराचरसैं । सूरि.॥ ॐ ह्रीं सूरिसुधागुणाय नमः अयं ॥२६५॥ जा धुनि सुनि संशय विनसै जिम ताप मेघ वरसै। मनहुँ कमल मकरन्द वृन्द अलि पाय सुधा सरसै॥ सूरि.॥ ॐ ह्रीं सूरिसुधाध्वनये नमः अध्यं ॥२६६॥ अजर अमर सुखदाय मन ज्यों मयूर हरसै। गाजत.घन बाजत ध्वनि सुनि मनु भाजन भय उरसै॥सूरि.॥ ॐ ह्रीं सूरिअमृतध्वनिसुरूपाय नमः अर्घ्यं ॥२६७॥ , चकोर छन्द जो अपने गुण वा पर्याय, वरै निज धर्म न होत विनास। द्रव्य कहावत है सुअनन्त, स्वभावधरै निज आत्मविलास॥ सूरि कहाय सु कर्म खिपाइ, निजातम पाय गये शिवधाम। सुआतमराम सदा अभिराम भये, सुख काम नमूं वसुजाम॥ ॐ ह्रीं सूरिद्रव्याय नमः अध्यं ॥२६८॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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