SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१५५ तिहुँ लोकनाथ तिहुँ लोकपूज, शरणागत प्रतिपालन अदूज। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ ह्रीं सूरित्रिलोकमण्डलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२४८॥ अव्यय अपूर्व सामर्थ युक्त, संसारातीत विमोह मुक्त ॥ शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ ॐ ह्रीं सूरिऋद्धिमण्डलशरणाय नमः अयं ॥२४९॥ त्रोटक छन्द जिन रूप अनूप लखें सुख हो, जग में यह मन्त्र महान कहो। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥ ॐ ह्रीं सूरिमन्त्रस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥२५०॥ जिम नागदेववशमन्त्र विधि, भववासहरणतुमनाम निधि। धरि भक्ति हिये गणराजसदा, प्रणमूं शिववास करै सुखदा॥ ..... ॐ ह्रीं सूरिमन्त्रगुणाय नमः अयं ॥२५१॥ । जगमोहित जीव न पावत हैं, यह मन्त्र सु धर्म कहावत हैं। धरिभक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥ __ॐ ह्रीं सूरिधर्माय नमः अर्घ्यं ॥२५२॥ चिदरूप चिदातम भाव धरें, गुण सार यही अविरुद्ध वरें। धरिभक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूंशिववास करैं सुखदा॥ . ॐ ह्रीं सूरिचैतन्यस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥२५३॥ अविकार चिदातम आनन्द हो, परमातम हो परमानन्द हो। धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणमूं शिववासक सुखदा॥ ॐ ह्रीं सूरिचिदानन्दाय नमः अर्घ्यं ॥२५४॥ जगमोहित जीवराजसदा, प्रण अध्य॥२५२
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy