SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६] श्री सिद्धचक्र विधान सुभाव निजातम अन्तर लीन, विभाव परातम आपद कीन। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥ ॐ ह्रीं सिद्धअन्तराकाराय नमः अयं ॥१९६॥ जहाँ लग द्वेष प्रवेश न होय, तहाँ लग सार रसायन होय। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ, धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥ । ॐ ह्रीं सिद्धसाररसाय नमः अयं ॥१९७॥ . जिसो निरलेपहुए विषतुंब्य, तिसोजगअग्र निराश्रय लुंब्य। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥ ॐ ह्रीं सिद्धशिखरमण्डनाय नमः अर्घ्यं ॥१९८॥ तिहूँजगशीशबिराजित नित्य, शिरोमणिसर्वसमाजअनित्य। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ, धरोंचरणांबुजको निजमाथ॥ ॐ ह्रीं सिद्धत्रिलोकाग्रनिवासिने नमः अर्घ्यं ॥१९९॥ अकाय अरूप अलक्ष अवेद, निजातम लीन सदा अविछेद। भजोमनआनन्दसों शिवनाथ,धरोंचरणांबुजकोनिजमाथ॥ ॐ ह्रीं सिद्धस्वरूपगुप्तेभ्यो नमः अयं ॥२०० ॥ ___ अडिल्ल छन्द ऋषभ आदि चित धारी प्रथम दीक्षा धरी, केवलज्ञान उपाय धर्म विधि उच्चरी। निजस्वरूप थितिकरण हरणविधि चार हैं, परमारथ आचार्य सिद्ध सुखकार हैं। ॐ ह्रीं सूरिभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२०१॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy