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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१४३ मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ ॐ ह्रीं सिद्धपरमात्मस्वरूपाय नमः अयं ॥१७९ ॥ पर-परिणतिखण्डं भेदबाधाविह ण्ड, शिवसदननिवासी नित्य स्वानन्दरासी। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ _ॐ ह्रीं सिद्धअखण्डस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥१८०॥ चित सुख विलसानं आकुलं भाव हानं, निज अनुभव सारं द्वैत संकल्प टारं । मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, .. .. भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ . ॐ ह्रीं सिद्धचिदानन्दस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥१८१ ॥ परकरण निवारं भाव संभाव धारं, . निज अनुपम ज्ञानं सुक्खरूपं निधानं । मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ - ॐ ह्रीं सिद्धसहजानन्दाय नमः अयं ॥१८२॥ विधि वश सब प्रानी हीन आधिक्य ठानी, तिसकरण निमूला पाप रूपाधरूला। मन-वच-तन लाई पूजहों भक्ति भाई, भवि भव भय चूरं शाश्वतं सुक्ख पूरं॥ - ॐ ह्रीं सिद्धअछेद्यरूपाय नमः अयं ॥१८३॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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