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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१४१ जिनको पूर्वापर अन्त नहीं, नित धार प्रवाह बहै अति ही। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। . ॐ ह्रीं सिद्धअनन्तशरणाय नमः अध्यं ॥१६५॥ कबहूँ नहीं अन्त समावत हैं, सु अनन्त अनन्त कहावत हैं। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धअनन्तानन्तशरणाय नमः अयं ॥१६६॥ तिहुँकालसुसिद्धमहासुखदा, निजरूपविर्षे थिरभावसदा। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। - ॐ ह्रीं सिद्धत्रिकालशरणाय नमः अयं ॥१६७॥ तिहुँलोकशिरोमणिपूजिमहा, तिहुँलोक प्रकाशक तेजकहा। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धत्रिलोकशरणाय नमः अयं ॥१६८॥ गिनती परमाण जु लोक धरे, परदेश समूह प्रकाश करे। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ह्रीं सिद्धअसंख्यातलोकशरणाय नमः अयं ॥१६९॥ पूर्वापर एकहि रूप लसे, नित लोक सिंहासन वास बसै। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धघ्रौव्यगुणशरणाय नमः अर्घ्यं ॥१७०॥ जगवास पर्याय विनाश कियो, अब निश्चयरूप विशुद्धभयो। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धउत्पादगुणशरणाय नमः अयं ॥१७१॥ परद्रव्य थकी रुष राग नहीं, निजभाव बिना कहुँ लाग नहीं। इनहीं गुण में मन पागत हैं, शिववास करो शरणागत हैं। ॐ ह्रीं सिद्धसाम्यगुणशरणाय नमः अयं ॥१७२॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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