SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [ १३५ अन्तर द्वीप मही जहाँ, देवन के अभिराम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतैं, तिनके पद परणाम है ॥ ॐ ह्रीं द्वीपसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १२८ ॥ देव गये ले सिन्धु जब, कर्म छ्यो तिह ठाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगतैं, तिनके पद परणाम है ॥ ॐ ह्रीं उदधिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १२९ ॥ भुजङ्गप्रयात छन्द धरैं जोग आसन गहैं शुद्ध ताई, न हो खेद ध्यानाग्नि सों कर्म छाई । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा, यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं स्वस्थित्यासनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१३०॥ महा शांति मुद्रा पलौथी लगाये, कियो कर्म को नाश ज्ञानी कहाये । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा, यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं पर्यङ्कासनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १३१ ॥ लहै आदि को संहनन पुरुष देही, लखायो परारम्भ में भाव ते ही । भये सिद्ध राजा निजानन्द साजा, यही मोक्ष जाना नमः सिद्ध काजा ॥ ॐ ह्रीं पुरूषवेदसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥ १३२ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy