SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१३३ वन गिरि नगर गुफादि सर्व थलसों, शिव पाई। सिद्धक्षेत्र सब ठेर बखानत, श्री जिनराई॥ ह्रीं स्थलसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ॥११३॥ नभही में जिन शुकलध्यान, बलकर्मनाशकिय। आयु पूर्णवश ततछिन, हीशिववासजाय लिय। ___ॐ ह्रीं गगनसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥११४॥ आयु स्थिति सम अन्य कर्म-कारण परदेशा। परसै पूरण लोक आत्म, केवली जिनेशा॥ ॐ ह्रीं समुद्घातसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ॥११५॥ केवलि जिन समुद्घात, शिववास लिया है। स्वते स्वभाव समान, अघाती कर्म किया है। ॐ ह्रीं असमुद्घातसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥११६॥ उल्लाला छन्द तिन विशेष अतिशय रहित, सामान्य केवली नाम है। सिद्ध भये तिहुँ योगरौं, तिनके पद परणाम है। ॐ ह्रीं साधारणसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥११७॥ त्रिभुवन में नहीं पावतो, जो जिन गुण अभिराम है। .सिद्ध भये तिहुँ योगरौं, तिनके पद परणाम है। ॐ ह्रीं असाधारणसिद्धेभ्यो नमः अध्यं ॥११८॥ गर्भ कल्याणक आदि युत, तीर्थङ्कर सुख धाम है। सिद्ध भये तिहुँ, योगरौं, तिनके पद परणाम है। . ॐ ह्रीं तीर्थङ्करसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥११९॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy