SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४] श्री सिद्धचक्र विधान तीन लोक में सार सु श्रीअरहंत स्वयम्भू ज्ञानी। नमूं सदा शिवरूप आप हो भविजन प्रति सुखदानी॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥४८॥ सर्वोत्तम तिहुँ लोक प्रकाशित, केवलज्ञान स्वरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद सार अनूपी॥ ___ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥४९॥ ज्ञान तरंग अभंगं बहै, लोकोत्तम सार अरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ___ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलज्ञानस्वरूपाय नमः अयं ॥५०॥ सहित असाधारण गुण पर्याय, केवलज्ञान सरूपी॥ सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥५१॥ जगजिय सर्व अशुद्ध कहो, इक केवल शुद्ध सरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलाय नमः अर्घ्यं ॥५२॥ विविध कुरूप सर्व जगवासी, केवल स्वयं सरूपी। सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमकेवलस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥५३॥ हीनाधिक धिक धिक जग प्राणी, धन्य एक ध्रुवरूपी॥ सो अरहंत नमूं शिवनायक, सुखप्रद धार अनूपी॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमध्रुवभावाय नमः अर्घ्यं ॥५४॥ टोहा . संसारिन के भाव सब, बन्ध हेत वरणाय। मुक्तिरूप अरहंत के, भाव नमूं सुखदाय॥ ॐ ह्रीं अरहल्लोकोत्तमभावाय नमः अर्घ्यं ॥५५॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy