SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६] श्री सिद्धचक्र विधान मम उद्यम करिकहाआपही, सो एकाकी अर्थ लहामी॥ द्वादशअधिक पञ्चशत संख्यक, नाम उचारतहूँसुखधामी॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने द्वादशाधिकपञ्चशत ५१२ गुण सहिताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं क्षुधारोगविनाशनमयं नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ पूरणज्ञानानन्द ज्योति घन, विमल गुणातमशुद्ध स्वरूपी। हो तुम पूज्य भये हम पूजक, पाय विवेक प्रकाश अनूपी॥ मोह अन्ध विनसो तिह कारण, दीपनसों अनूं अभिरामी॥ द्वादशअधिक पञ्चशत संख्यक, नाम उचारत हूँ सुखधामी॥ ____ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने द्वादशाधिकपञ्चशत ५१२ गुण सहिताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ धूप व उघरै प्रजरें मणि, हेम धरें तुम पद पर वारूँ। बार-बारआवर्त जोरिकरि, धार-धार निजशीशनहारूँ॥ धूम्र धार समत्तन रोमांचित, हर्ष सहित अष्टांग नमामी। द्वादशअधिक पञ्चशत संख्यक, नाम उचारतहूँ सुखधामी॥ ___ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने द्वादशाधिकपञ्चशत ५१२ गुण सहिताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ तुम हो वीतराग निज पूजन, वन्दन थुति परवाह नहीं है। अरु अपने समभाव बहै कछु, पूजा फलकीचाह नहीं है।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy