SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४] श्री सिद्धचक्र विधान श्री सप्तमी पूजा ५१२ गुण सहित प्रारम्भ छप्पय छन्द ऊरध अधो सुरेफ बिन्दु हङ्कार बिराजे। . अकारादि स्वर लिप्तकर्णिका अन्त सु छाजे॥ वर्गनि पूरित वसुदल अम्बुज तत्त्व सन्धिधर। अग्रभाग में मन्त्र अनाहत सोहत अतिवर॥ फुनि अन्त ह्रीं वेढ्यो परम, सुर ध्यावत अरिनागको। है केहरिसम पूजन निमित्त, सिद्धचक्र मंगल करो॥ ____ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिनः द्वादशाधिकपञ्चशत ५१२ गुणसंयुक्त बिराजमान अत्रावतरावतरत संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। दोहा . सूक्ष्मादि गुण सहित हैं, कर्म रहित नीरोग। सिद्धचक्र सो थापहूँ, मिटें उपद्रव योग॥ ___ इति यन्त्र स्थापनम्। परिपुष्पाञ्जलि क्षिपेत्। अथाष्टकं - चाल - बारामास छन्द सुवरणीकुम्भक्षीरभरधारत, मुनिमनशुद्ध प्रवाह बहावहिं। हमदोऊविधिलायक नाही, कृपाकरहुलहि भवतटभावहिं॥ शक्तिसारु सामान्य नीरसों, पूनँ हूँ शिवतिय के स्वामी। द्वादशअधिक पञ्चशत संख्यक, नाम उचारत हूँ सुखधामी॥ - ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने द्वादशाधिकपञ्चशत ५१२ गुण सहिताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy