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________________ ११२] . श्री सिद्धचक्र विधान सब जीवन के हेत, दशविधि धर्म बताइयो। जासों होय सुचेत, आलस तजि धारण करो॥ ॐ ह्रीं दशधर्मसंयुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥२५८॥ दोहा इत्यादिक आनन्द गुण, धारत सिद्ध अनन्त। तिन पद आठों दरवसों, पूजत हैं निज सन्त॥ ___ॐ ह्रीं आनन्दपूर्णांय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२५९॥ . ॐ ह्रीं षट्पञ्चाशत्अधिकद्विशतगुणयुक्ताय सिद्धाधिपतये महाघु नि. स्वाहा। "ॐ ह्रीं अहँ असि आ उ सा नमः' मंत्र का १०८ बार जाप देना चाहिये। जयमाला - दोहा थावर शब्द विषय धरै, त्रस थावर पर्याय। यों न हीय तो तुम सुगुण, हम किह विधि वर्णाय॥ तिस पर जो कछु कहत हैं, केवल भक्ति प्रमान। बालक जल शशि बिंब को, चहत ग्रहण निज पान॥ पद्धड़ी छन्द जय जग निमित्त व्यवहार त्याग, पायो निज शुद्ध स्वरूप भाग। जय जग पालन बिन जगत् देव, जय दयाभाव बिन शान्तिमेव॥ परसुखदुःखकरणकुरीतिटार, परसुखदुःखकारणशक्तिधार। फुनि-फुनिनव-नवनित जन्मरीत, बिनसर्वलोकथापी पुनीत॥ जय लीला रास विलास नास, स्वाभाविक निजपद रमण बास। शयनासन आदि क्रियाकलाप, तजसुखी सदा शिवरूपआप॥ बिन कामदाह नहीं नार भोग, निरद्वन्द निजानन्द मगन योग। वरमाल आदि श्रृंगार रूप, बिन शुद्ध निरञ्जन पद अनूप॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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