SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१०७ तिहुँकालतिहुँजगके सुखको, करवारअनन्त गुणाइनको। तुम एक समय सुख कीसमता, नहीं पाय नमूमन आनंदा॥ ह्रीं अतुलसुखाय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥२२३ ॥ नाराच छन्द सर्व जीव राश के सुभाव आप जान हो, आप के सुभाव अंश और कौन ज्ञान हो। सो विशुद्ध भाव पाय जासकौ न अन्त हो, राज हो सदीव देव चरण दास सन्त हो। ॐ ह्रीं अतुलभावाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२२४॥ आप की गुणौघ वेलि फैलि है अलोकलों। शेष से भ्रमाय पत्र की न पाय नोकलों॥ सो विशुद्ध.॥ ॐ ह्रीं अतुलगुणाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२२५ ॥ सूर्य को प्रकाश एक देश वस्तु भास ही। आप को सुज्ञान भान सर्वथा प्रकाश ही॥ सो विशुद्ध.॥ ___ ॐ ह्रीं अतुलप्रकाशाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२२६ ॥ तास रूप को गहो न फेरि जास नाश हो। स्वात्मवास में विलास आस त्रास नाश हो॥सो विशुद्ध.॥ ॐ ह्रीं आत्मवासजिनाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२२७ ॥ सोरठा मोहादिक रिपु जीति, निजगुण निधि सहजें लहो। विलसो सदा पुनीति, अचल रूप बन्दों सदा॥ ॐ ह्रीं अचलगुणाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥२२८॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy