SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१०१ साधना जब तई होत है तब तई, दोऊ परिमाण को काज जामें नहीं। आप निजपद लियो तिन जिलॉजलि दियो, अन्य नहीं चहत निज शुद्धता में लियो॥ ॐ ह्रीं परिणामविमुक्ताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८॥ तोमर छन्द द्रग ज्ञान पूरणचन्द्र, अकलङ्क ज्योति अमन्द। निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥ ॐ ह्रीं ब्रह्मस्वरूपाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८१॥ सब ज्ञानमयी परिणाम, वर्णादि को नहिं काम। निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥ ... ॐ ह्रीं ब्रह्मगुणाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८२ ॥ निज चेतना गुण धार, बिन रूप हो अविकार। निरद्वन्द ब्रह्मस्वरूप, नित्त पूजहूँ चिद्रूप॥ . ॐ ह्रीं ब्रह्मचेतनाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८३॥ सुन्दरी छन्द अन्य रूप सों अन्य रहैं सदा, पर निमित्त विभा न हो कदा। कहत हैं मुनि शुद्ध सुभावजी, नमूं सिद्ध सदा तिन पायजी॥ ___ ॐ ह्रीं शुद्धस्वभावाय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१८४॥ परपरिणामनसोंनहिंमिलतहैं,निजपरिणामनसोंनहिंचलतहैं। शुद्ध परिणामीतुमपद नमू, नमत तुमपदसबअघकोदमूं॥ ___ॐ ह्रीं शुद्धपरिणामकाय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१८५॥ . .
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy