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________________ ८८] श्री सिद्धचक्र विधान ज्यों वज्र की कीली ठुकी हो हाड सन्धी में जहाँ, सामान वृषभ जु जेवरी ताकरि बँधाई हो तहाँ। है दूसरा संहनन यह नाराच वज़ प्रकार हो। यह.॥ ___ॐ ह्रीं वज्रनाराचसंहननरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥८९॥ नहिं वज्र का हो वृषभ अरु नाराच भी नहीं वज्र हो, सामान कीली करि ठुकी सब हाड वज्र समान हो। है तीसरा संहनन जो नाराच ही परकार हो। यह.॥ ॐ ह्रीं नाराचसंहननरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥९०॥ हो जडित छोटी कीलिका, सो सन्धि हाडों की जबै, कछु ना विशेषण वज्र के, सामान्य हो होवे सबै। . है चौथवाँ संहनन जो, नाराच अर्द्ध परकार हो। यह.॥ ___ॐ ह्रीं अर्द्धनाराचसंहननरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥९१॥ ... जो परस्पर जडित होवे, सन्धि हाडन की जहाँ, नहीं कीलिका सो ठुकी होवे, साल सन्धी के तहाँ। है पाँचवाँ संहनन कीलक, नाम यह परकार हो॥ यह.॥ ___ॐ ह्रीं कीलिकसंहननरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥१२॥ कछु छिद्र कछुक मिलाप होवे, सन्धि हाड़ोंमय सही, केवल नसासों होय बेढ़ी, माससों लतपत रही। अन्तिम स्फटिक संहनन, यह हीन शक्ति असार हो॥यह.॥ ॐ ह्रीं असंप्राप्तासृपाटिकासंहननरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥१३॥ दोहा- वर्ण विशेष न स्वेत है, नामकर्म तन धार। स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार॥ ॐ ह्रीं श्वेतनामकर्मरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥९४ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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