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________________ --(सिद्ध धाक हाँ मंडल विधान - KERALA (१८) यों अनन्त ज्ञानादि गुणोंकी, सम्पत्से जो युक्त सदा, विविध सुनय तप संयमसे हो, सिद्ध, न भजते विकृति कदा। सम्यग्दर्शनज्ञानचरणसे, तथा सिद्धपदको पाते, पूर्ण यशस्वी हुए, विश्व-देवाधिदेव जो कहलाते ।। (१९) आवागमन विमुक्त हुए, जिनको करना कुछ शेप नहीं। आत्मलीन, सब दोष हीन, जिनके विमावका लेश नहीं। राग द्वेप भयमुक्त निरंजन, अजर अमरपदके स्वामी, मंगलभूत पूर्ण विकसित, सत चिदानन्द जो निष्कामी ॥ (२०) ऐसे हुए अनन्त सिद्ध औ, वर्तमान हैं संप्रति जो। आगे होंगे सकल जगतमें, विबुध जनोंसे संस्तुत जो। उन सबको नतमस्तक हो मैं, वन्दं तीनों काल सदा, तत्स्वरूपकी शीघ्र प्राप्तिका, इच्छुक होकर, सहित मुदा ॥ अ ----------- rauterinemmyme--- माया - -
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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