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________________ ८ ਭਵਨ तपांतर पितनिर्मलयोग, समाप्तविवाध विशोक विरोग । प्रदुःखदवानलमेघ विरुद्ध महासुखमन महो जयरिद्ध ॥ ७ ॥ चिरंतनकालकलाकृतवास, भवोदधिसातनशुद्धसमास । मनीषीकविमुक्त विशुद्ध, महामुखमन महो जयरिद्ध ॥ ८ ॥ अनादिनिरंतपदस्थितरूप, रसादिविमुक्त विविक्त विधूप । जरादिदशादलनार्थविशुद्ध, महामुखमन महो जयरिद्ध || ९ || महेश शंकर निर्जर शक, मुनीन्द्र सुचन्द्र सुभास्करचक्र | पराच्युतभाव सुशीतलबुद्ध, महामुखमग्नमहोजयरिद्ध ॥ १० ॥ समरससमनं पूर्णभाव विभावम्, जनितशिवसुसारं यःस्मरेत् सिद्धचक्रम् । सिद्ध शक अखिलनरसुपूज्यं शौभचन्द्रादिसंव्यम्, भजति शिवशान्ति संविभुज्याखिलार्थम् ॥ ११ ॥ इतिश्रीशुभचन्द्रकृतसहस्त्रनामगुणित पूजा संपूर्णा ॥ ॥ भद्रं भूयात् ॥ धान S દ
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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