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________________ अर्थात्- सूर्योदय होनेवाला होता है वो उससे पहले प्रभात होकर उससे अन्धकार फटता है फिर सूर्य प्रगट होता है वैसे ही सम्यक्त्व होने से परले इस आत्मा का करण नाम का प्रक्रम सुरू होता है जिससे कि मिथ्यात्व मोह कर्म का नाश होकर सम्यक्त्व प्रगट होता है । वह करण तीन तरह से होता है, अधःकरण अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण जिससे कि आत्मा निर्मल, निर्मलतर और निर्मलतम होती है जैसे किसी भी मैले कपड़े को पानी से गीला करके धोया जाता है तो उसका उपरिका कुछ मैल निकल जाता है फिर साबुन लगा कर धोने से उजला निकलता है किन्तु कुछ कमी रहजाती है सो दुवारा साबुन लगाकरके धोने पर वह बिलकुल स्वच्छ होजाया करता है । याद रहे कि मेह कर्म को दर्शनमोह और चारित्र मोह के भेद से दो भागों में बाटा गया है और दोनों ही तरह का मोह नाश होने से स्पष्ट सम्यक्त्व-पूरा खरापन हो पाता है और दोनो ही प्रकार के मोह को नाश करने के लिये आत्मा को उपर्युक्त तीनो करण करने होते हैं। किन्तु उन दोनों तरह के मोह में से दर्शनमोह धूमसे की कारिख के समान चीठदार होता है और चारित्र मोह जो है वह कायलों के संसर्ग से लगी हुई कारिख की तरह साधारण से प्रयास से दूर होनाने वाला है अतः मोह शब्द से प्रधानतया दर्शनमोह ही लिया जाता है और चारित्र मोह को राग द्वेष शब्द से । और दूसरी थात यह भी है कि दर्शनमोह का जव अभाव किया जाता है
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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