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________________ ( २६ ) - - - - दो तरह की शक्तियां होती है एक तो सुटा दूसरी विस्फुटा। सुटा शक्ति का कार्य निरन्तर चालू रहता है किन्तु विस्फुटाशक्ति अपने समय पर काम करती है जैसे आत्मा की चेतना शकि हर समय अपना कार्य करती रहती है परन्तु आत्मा ही की जो क्रियावती शक्ति है स्थान से स्थानान्तर होने रूप जो वाकत है यह सिद्ध अवस्था में सिद्धालय मे जाकर विराजमान हाजाने के बाद में अपना कार्य नहीं करती से हो वैभाविको शक्ति भी है। दूसरे के साथ मेल होने में उसका कार्य चालू होता है । अस्तु । पुद्गल के साथ में आत्मा का सम्बन्ध होने से क्या बात हो रही है सो बताते हैंअदृश्यभावेन निजस्यजन्तु दृश्ये शरीरे निजवेदनन्तु । दधत्तदुद्योतनकेऽनुरज्य विरज्यतेऽन्यत्रधियाविभज्य । १४ अर्थात्- इश्यनाम दीखने या देखने योग्य तथा दिखलाने योग्य का है दुनियां की सारी चीजे दृश्य हैं और आत्मा अदृश्य है । आत्मा हप्टा है देखने वाला है और सब चीज उसके द्वारा देखने लायक हैं । अथवा प्रात्मा तो दर्शक है दिसलानेवाला है और यह सब ठाठ दृश्य ।मतलब आल्मा एक प्रकारसे नटवा है स्वागी है और यह संसार नाटक घर, जिसमें नाना प्रकारके स्वान भरकर यह वाडी नृत्य करताहै। रंगस्थल में स्वांग भरकर नाचने वाला जैसा स्वांग लिये नाचता है तो भोला बालक उसमे छुपे व्यक्ति को नही पहिचान कर राजा के
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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