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________________ ( २६ ) - दीपक के प्रकाश की भांति संकोच विस्तार शक्ति को लिये हुये है अतः जितना बडा शरीर पाता है उसी प्रमाण होकर रहता है। मुक्तदशा में अपने अन्तिम शरीर के आकार,उससे कुछ न्यूनदशा में रहता है । पुद्गल द्रव्य भिन्न भिन्न अणुरूप अनन्तानन्त हैं जो पुद्गलाणु अपने सिग्ध और रूक्षगुण की विशेषता से एक दूसरे से मिल कर स्कन्धरूप हो जाते हैं इस अपेक्षा से पुद्गल द्रव्य भी बहुप्रदेशी ठहरता है । अतः एक काल द्रव्य को छोड कर शेष पांच द्रव्य अस्तिकाय कहे जाते है। जीवाश्च केचिवणवः स्वतन्त्राः केचित सम्मेलनतोऽन्यतत्राः कौमारमेके गृहितांचकेऽपि नराश्चदारा अनुयान्तितेऽपि ॥११॥ ___ अर्थात्-उपर्युक्त छह द्रव्योंमे से धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चार द्रव्य तो सदासे स्वतन्त्र है इनका द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इनके आधीन है किन्तु जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य स्वतन्त्र भी होते है और परतन्त्र भी । जब कि एकाकी होते हैं तो स्वतन्त्र किन्तु दूसरे द्रव्य के मेलसे इनका परिणमन परतन्त्र भी होता है। जैसे कि आदमी तथा औरतों में से कितने ही मरद कुवारे और कितनी ही औरते कुवारी रहती है बाकी के मरद तथा औरत एक दूसरे के साथ अपना साठी सम्बन्ध करके गृहस्थ बनते है तो उनका रहन सहन परस्पर एक दूसरे के आधीन होता है । एवं उनमें एक प्रकार की विलक्षणता आजाती है।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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