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________________ : २० पूज्य-सूत्र ( २६४ ) जो आचार-प्राप्ति के लिए विनय का प्रयोग करता है, जो भक्तिपूर्वक गुरु-वचनो को सुन एव स्वीकृत कर कहने के अनुसार कार्य को पूरा करता है, जो गुरु की कभी अशातना नही करता वही पूज्य है। ( २६५ ) जो केवल सयम-यात्रा के निर्वाह के लिए अपरिचितभाव से दोप-रहित भिक्षावृत्ति करता है, जो आहार आदि न मिलने पर कमी खिन्न नहीं होता और मिल जाने पर कभी प्रसन्न नहीं होता, वही पूज्य है। ( २६६ ) जो सस्तारक, शय्या, आसन और भोजन-पान आदि का अधिक लाभ होने पर भी अपनी आवश्यकता के अनुसार थोडा ही ग्रहण करता है, सन्तोप की प्रधानता में रत होकर अपने आपको सदा सन्तुष्ट बनाये रखता है, वही पूज्य है।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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