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________________ अशरण-सूत्र ( १८६) पढ़े हुए वेद वचा नहीं सकते, जिमाये हुए ब्राह्मण अन्धकार से अन्धकार में ही ले जाते है, तथा स्त्री और पुत्र भी रक्षा नहीं कर सकते, तो ऐसी दशा में कौन विवेकी पुरुष इन्हे स्वीकार करेगा? ( १९०) द्विपद (दास, दासी आदि मनुष्य), चतुष्पद, क्षेत्र, गृह और धन-धान्य सब कुछ छोड़कर विवशता की दशा में प्राणी अपने कृत कर्मों के साथ अच्छे या बुरे परभव मे चला जाता है। ( १९१ ) जिस तरह सिंह हिरण को पकडकर ले जाता है, उसी तरह अतसमय मृत्यु भी मनुष्य को उठा ले जाती है। उस समय माता, पिता, भाई आदि कोई भी उसके दुःख में भागीदार नहीं होते-परलोक में उसके साथ नहीं जाते। ( १९२ ) संसार में जितने भी प्राणी है, वे सब अपने कृत कर्मों के कारण ही दुखी होते हैं। अच्छा या दुरा जैसा भी कर्म है, उसका फल भोगे विना कभी छुटकारा नही हो सकता ।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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