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________________ अप्रमाद-सूत्र (१४७ ) घुमावदार विषम मार्ग को छोडकर तू सीधे और साफ मार्ग पर चल । विपम मार्ग पर चलनेवाले निर्वल भारवाहक की तरह बाद में पछतानेवाला न वन । हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १४८ ) तू विशाल ससार-समुद्र को तैर चुका है, अव भला किनारे आकर क्यो अटक रहा है ? उस पार पहुंचने के लिए जितनी भी हो सके शीघ्रता कर । हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १४६ ) भगवान् महावीर के इस भांति अर्थयुक्त पदोवाले सुभापित वचनो को सुनकर श्री गौतम स्वामी राग तथा द्वेष का छेदन कर सिद्धि-गति को प्राप्त हो गये।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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