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________________ अप्रमाद-सूत्र ( १३८ ) आर्यत्व पाकर भी पाँचो इन्द्रियो को परिपूर्ण पाना वडा कठिन है। बहुत से लोग आर्य-क्षेत्र में जन्म लेकर भी विकल इन्द्रियोवाले देखे जाते है । हे गौतम । क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १३६ ) पांचो इन्द्रियाँ परिपूर्ण पाकर भी उत्तम धर्म का श्रवण प्राप्त होना कठिन है। बहुत-से लोग पाखडी गुरुओ की सेवा किया करते है । हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। (१४० ) उत्तम धर्म का श्रवण पाकर भी उसपर श्रद्धा का होना वडा कठिन है। बहुत से लोग सब कुछ जान-बूझकर भी मिथ्यात्व की उपासना मे ही लगे रहते हैं। हे गौतम ! क्षणमात्र मी प्रमाद न कर। ( १४१ ) धर्म पर श्रद्धा लाकर भी शरीर से धर्म का आचरण करना वडा कठिन है । ससार में बहुत-से धर्मश्रद्धालु मनुष्य भी काम-भोगो मे मूछित रहते है । हे गौतम | क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। (१४२ ) तेरा शरीर दिन प्रति दिन जीणं होता जा रहा है, सिर के वाल पककर श्वेत होने लगे है, अधिक क्या-शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार का बल घटता जा रहा है। हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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