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________________ ( १८ ) करना अधिकरण या आधार एवं अभिन्न रूप से एकमेक होते हुये जो प्राप्त करने वाला हो वह उपादान होता है । नियमेनमीयतेऽङ्गीक्रियते तन्निमित्तं सहायकं वस्तु । यानी निमित्त का अर्थ होता है सहायक सहयोग देनेवाला मददगार और जहां मदद की जाती है उसको नैमित्तिक कहते हैं । निमित्त नैमित्तिकता भिन्न द्रव्यों में हुवा करती है सो यहां पर कार्माण स्कन्ध निमित्त है और आत्मा नैमित्तिक । वह कार्मारणसमूह उदासीन निमित्त है जैसे कि सूर्य कमल के लिये अर्थात्- सूर्य का उदय कमल को जबरन नही खोलता परन्तु उसका निमित्त पाकर कमल खुद ही खुल उठता है वैसे ही यह संसारी आत्मा कर्मोदय के निमित्त से विकृत हो रहा है। वह विकार क्या सो बताते हैं दुग्घे घृतस्यैवतदन्यथात्वं सम्बिद्धि सिद्धिप्रिय मोहदात्वं इहात्मनः कमणि संस्थितस्य सूपायतः सादि तथात्वमस्य ॥७ अर्थात् सिद्धि के स्वामी होने वाले हे आत्मन् यदि तू हृदय से विचार कर देखे तो तुझे समझ मे आजावेगा कि इन कर्मों में मूर्छित हो कर रहने वाले तेरा वह अन्यथापना अनादिकालीन ऐसा है जैसा कि दुग्धमे हो रहने वाले घृतका मतलब यह कि घृत का स्वभाव ठण्डक में ठिरजाने का और गरमी से पिघलाने का तथा कपड़े बगेरह के लगजावे तो उसे चिकना बना देने का किंवा यों कहो कि दीपक की बत्ती में
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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