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________________ संपादकीय 'महावीर वाणी के इस रूप में पाने की एक लम्बी कहानी है। बहुत दिनों से मेरी इच्छा थी कि एक ऐसे छोटे से प्रन्थ के संकलन का आयोजन होना चाहिए जो जैनधर्म के प्रमुख अंगालि शास्त्रों का बोहन हो और जिसमें नैनधर्म का सर्वधर्मसमभावपूर्ण कार्य अच्छी तरह से प्रतिविम्वित हो सके। जब मेरे स्नेही विद्यार्थी श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ (न्यायतीर्थ, अध्यापकजैन गुरुकुल, ब्यावर) ने जन सूत्रों में से ऐसा संकलन करके मुझे दिखाया तो मैने समझा कि मेरा संकल्प सिद्ध हुआ। ___ उक्त संकलन के सशोधन होने के बाद उस पर मेरे मित्र पंडित प्रवर प्रज्ञाचक्षु श्री सुखलालजी संघवी (प्राचार्य जनशास्त्र, हिंदूविश्व-विद्यालय, काशी) की वेधक दृष्टि फिरी और पुनः उपयोगी संशोधन हुए । इस प्रकार 'महावीर-वाणी प्रस्तुत हुई। साथ ही सर्वारम्भाः तण्डुलप्रस्थमूला:-न्याय से उसके लिए हमारे चिर-परिचित एक उदार मारवाड़ी सज्जन श्री मानमलनी गोलेच्छा [प्रतिनिधि शंकरलाल मानमलजी, खीचन (फलोधी, मारवाड़) से अर्थ सहायता भी उपलब्ध हो गयी। वह विद्याप्रेमी और विद्योपासक है, ज्ञानप्रचार और जनहित में सदैव
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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