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________________ ( १८२ ) और वह खारी लगी । फिर जब उन्हें मिश्री के नुकरे खाने को दिये गये तो उन्हें भी उस नमक सरीखे खारी मानकर नमक हीं मानें कर दूर फेक देते है । पिता कहता है कि यह नमक नहो किन्तु मिश्री है, एवं खारी नहीं लेकिन मिठी है, फिर भी नहीं मानते जब मक्खियां आती हैं तो वे मिश्री पर भिन्नाने लगती हैं और नमक पर नहीं, तब पिता फिर समझाता है कि देखा हलवाई की दुकान में मिठाई पर मक्खियां भिन्नाया करती हैं बनिये की नमक की ढेरी पर नहीं, वैसे ही ये सब करियां तो नमक की हैं खारी हैं जिन पर मक्खियां नहीं बैठती मगर ये सब नुकरे मिश्री के हैं जिन पर मक्खियां रही हैं। तो एक लड़के ने तो फिर भी नहीं माना और बोला कि नही ये समस्त कडरियां एकसी ही तो है, सभी खारी हैं, इनमें कोई मिश्री और कोई नमक ऐसा भेद नहीं है। बाकी के दो लड़के कुछ विचारशील थे उनके मनमें बात जम गई कि हां ये, जिनके अन्दर जरा पलकाई है, जिन पर मक्स्त्रियां बैठती हैं, सो सब कङ्करियां इन सफेद कंकरियों से जरूर न्यारी है और मिठी हैं, ये सब मिश्री की हैं। पिता जी का कहना बिलकुल ठीक है, चलो मुंह धोकर आवें तो इन को खायेंगे, इतने में ही उन दोनों में एक लड़का झट मुंह धोकर आकर उन 4 मिश्री की कंकरियों में से एक को उठा कर चखता है तो कहता 'है कि हा सचमुच मिश्री है, मीठी है। बस तो इसी प्रकार से शुक्लध्यानी का अनुभव आत्मा के बारे में होता है; परन्तु इस ✓
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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