SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६ ) से जैसा वो कहते हैं वैसा ही वो करते हैं तो राजा का राज्य मरीज का शरीर शिष्य का धर्म वेग ही नाश हो जाता है । अतः सत्गुरुदेव और वैद्य, मन्त्री निर्भय बोला करते है अथवा शिक्षा देते हैं। अब मैं आगे सुपुत्र शिक्षा लिख रहा हॅू पिताधर्याः माता स्वर्गी पिता ही परम तयः | पितरि प्रीतिमायन प्रियन्ते सर्व देवताः ॥ अर्थात्- जो पुत्र माता पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा से ही स्वर्ग प्राप्त करता है इस लिये माता पिता की सेवा करना ही परम तप है जो अपने माता पिता की आज्ञा पालन करता है उससे सम्पूर्ण देवता प्रसन्न रहते है और वह आनन्दपूर्वक क्लेशी से छूट कर यश कीति पाता है । प्रमाण | जैसे भगवान् श्रीराम जी ने अपने माता पिता की आज्ञा पालन की थी उनका नाम यश कीर्ति जब तक सूर्य चांद रहेगे तव तक उनका नाम अमर रहेगा । यह सनातनधर्म है । जैसेभगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी सती सीता से शुद्ध प्रेम ही किया था जो कि सारी उमर में एक ही सन्तान को पैदा किया था वैसे ही आपको अपनी पत्नीस शुद्ध प्रम करनेवाले अपनी पत्नी की सदा सम्मति लेने वाले अपनी स्त्री को सदा प्रसन्न रखने वाले अपनी स्त्री को सदा सन्तोष से रखने वाले की की सदा शुद्ध आज्ञा पालन करने वाले अपनी स्त्री को दयाधर्म
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy