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________________ ( १२६ ) मुकाव हुवा करता है फिर भी आंशिक भोगोपभोगी का भ उपयोग होता रहता है, मगर जहां प्रत्याख्यानावरणीय कपाय का क्षयोपशम हुवा कि भांगसामग्री से कुछ भी प्रयोजन नही रहता । स्त्री, पुत्र, धन, मकान बगेरह सभी तरह की बाह्य ऐश आराम की चीजों से अपने उपयोग को हटा कर आदमी मुनि वनाया करता है । → -- शंका-बाह्य वस्तुओं का त्याग तो द्रव्यलिंगी मुनि के भी होता है सो क्या उनके भी प्रत्याख्यानावरणीय कषाय का क्षयोपशम होता है ? उत्तर - द्रव्यलिङ्गी मिध्याद्यीट मुनि के किसी भी कपाय का क्षयोपशम नही हुवा करता मगर अनात्मभावरूप मिथ्यात्व के होने से उसके और सभी चारित्रमोहनीय कपाये एक अनन्तानुवन्धि के रूपमें उयमे आती रहती हैं, वह भव्यसेन मुनि की भांति अपने आपको बड़ाभारी तपस्वी मानाकरता है । औरों के प्रति तुच्छता का भाव उसके अन्तरंगमे घर कियेहुये रहता है । वह मानता है कि मैं जो यह तपस्या कररहा हूं सो किसी से भी न होनेवाला बहुत ही बड़ा काम का मिध्याभिमान और धर्मात्मावो के कर रहा हूँ । इस प्रकार प्रति घृणाभाव उसके सदा बना रहता है | शंका- ऐसी हालत मे उन्हें जो अन्तिम मैवेयक तक की प्राप्ति हो जाती है. सो कैसे होजाती है ' उत्तर- उनके मन, वचन और काय नामक योगो की प्रवृत्ति
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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